अकसर सोमवार बड़े भारी होते हैं। रविवार की व्यस्त छुट्टी के बाद जब सोमवार को सुबह ऑफिस पहुँची तो पाया कि पूरा केबिन दुर्गंध से भरा हुआ है, किसी जीव के मरने की दुर्गंध। बिन सोचे ही ये अनुमान लगा लिया गया कि शायद कोई चूहा मर गया होगा क्योंकि चूहे किसी भी संस्था का अभिन्न अंग होते हैं और अमूमन वे उस ऑफिस के कर्मचारियों से अधिक सक्रिय होते हैं। बाकी कर्मचारियों की तरह वे भी अपने हिस्से की रोटी के लिए भरपूर मेहनत करते हैं। इंसानो को यदि कोई बहुत करीब से जनता है तो वे चूहे ही हैं। वे हर समय पूर्णतः चौकन्ने रहते है कि कब आप कोई चूक करें और वे उस चूक का फायदा उठाएं।
गणपति का वाहन होने के बावजूद भी चूहों को समाज में कोई वशेष सम्मान प्राप्त नहीं हैं। आप में से कुछ लोगों को पता होगा कि चूहे को गणपति का वाहन क्यों कहा गया। जो नहीं जानते उन्हें यह जानकर दिलचस्प लगेगा कि चूहा तीव्र बुद्धि वाला चंचल प्राणी है जो मनुष्य की बुद्धि और मन का प्रतीक होत है एवम गणपति अपने विवेक से दोनों पर नियंत्रण रखते हैं। अतः चूहे का प्रतीक उनके पैरों के नीचे देखा जाता है। अन्य कई प्रचलित मान्यताओं में से मुझे यह ठीक तरह से समझ आती है सो मैंने उसका जिक्र कर दिया।
ऐसा भी माना जाता है कि चूहा मनुष्य के साथ रहने वाला उसका सबसे पुराना साथी है, जो इतना वफादार है कि पीढ़ी दर पीढ़ी वह आपका घर नहीं छोड़ता और अपनी हर वस्तु पर अपना बराबरी का अधिकार समझता है, और फिर ये अगर किसी कार्यालय में पदस्थ हो जाएं तो कहना ही क्या। अगर कोई तरकीब इज़ाद हो सके तो आप चूहों से किसी भी कार्यालय के गूढ़ से गूढ़ रहस्य को जान सकते हैं। गणेश जी का वाहन होने के साथ मुझे कहीं न कहीं ये भरोसा है कि चूहों को मनुष्य की हर बात समझ आती है और क्या पता यदि वे बोल सकते तो वे आज खुफिया एजेंसियों में बहुत उपयोगी साबित होते। चूहों पर हुए शोध में ऐसा पाया गया है कि, चूहे कितनी भी विषम परिस्थितियों में जीवित रह सकते हैं। उनकी ओर ध्यान देने पर उनकी यह बात मनुष्य के लिए एक प्रेरणा साबित हो सकती है किंतु वे प्रेरणा से ज्यादा परेशानी का सबब बनते हैं। वे बेरहमी से हमारी बेशक़ीमती आवश्यक वस्तुएँ कुतर देते हैं और हमें लाचार कर देते हैं और उनकी अत्यधिक कुतरने की प्रवत्ति के कारण ही वे मनुष्य के गुस्से का शिकार होते हैं। ऐसे भी मनुष्यों को अपने आगे कोई और कम ही पसंद आता है, फिर चूहे तो कोई वशेष रूप रंग लेकर भी नहीं आते।
वैसे पौराणिक कथाओं से लेकर किस्से कहानियों तक चूहों को वफादार देखा गया है और मिकी माउस के रूप में पसंदीदा काल्पनिक किरदार माना गया, किन्तु वास्तविकता में वे मनुष्य के सम्मान और प्रेम को तरसते हैं। इस नफरत का कारण प्लेग जैसे महामारी भी हो सकती है, जो भारी तबाही का कारण बनी और सर्वाधिक कुख्यात हुई। ब्लैक डेथ के नाम से प्रचलित इस बीमारी को सबसे प्राचीन बीमारियों में से एक माना जाता है जिसका नाम सुनते ही रूह कांप जाती है। किन्तु यह तय कर पाना अभी भी मुश्किल है कि इतने व्यापक रूप में उस महामारी के फैलने में चूहों के योगदान अधिक था या मनुष्यों का।
खैर वह जो भी रहा हो, चूहे मनुष्यों को स्वीकार नहीं।
न घर, न पड़ोस, और न ही कार्यालय। इएलिय हर सप्ताह के अंत में इस कार्यालय में चूहों को मारने की दवा रखी जाती है, जिसे चूहों को नाश्ते की तरह खाने की आदत हो गयी है। पर क्या कह सकते हैं? इस बार नाश्ते के बाद पानी न मिला हो। दुर्गंध के चलते, न चाहते हुए भी पूरे कार्यालय का सामान हटा कर देख लिया गया, किंतु मरा हुआ चूहा कहीं नहीं मिला, केवल दुर्गंध, जो सुबह तेज, थी और कुछ देर में उसके कम होने का अहसास होने लगा। कई क्विंटल रद्दी निकली, और कई अनुपयोगी वस्तुएँ जिनका अस्तित्व तक भूल चुके थे हम।
पता नहीं जो मर गया वह चूहा ही था या कुछ और? किंतु अगर चूहा था तो वह अपने साथ कार्यालय के कई गूढ़ रहस्य लेकर चला गया।
भगवान उसकी आत्मा को शान्ति दे!