अभी ही आँख लगी थी मेरी,
था सूरज भी बाकि ऊगने को,
की आवाज़ पड़ी कानों में,
धीमी- धीमी, चर्चाओं की,
अधखुली आँख से धुंधली सूरतें देखनी चाहीं,
मालूम हुआ की ज़्यादातर है अनजानी सी,
दबी हुयी आवाज़ में मैंने पूछा जो माँ से,
आया कौन कहाँ से इस अंधियारे पहर मैं,
बोली माँ उस पार से कुछ मेहमान आये हैं,
अमन चैन का साथ अपने संदेस लाये है,
कहते हैं खुश होकर सत्ता पलट गयी है,
रूठी हुई थी किस्मत वोह भी बदल गयी है,
आज सुबह से फिर सब पहले जैसा होगा,
आज से कोई बीच हमारे सरहद न होगी,
आज मिलन बरसों के बिछड़ों का होगा,
आज मिलने पर समय की कोई मोहलत न होगी,
मुल्क भी आज हमारा एक ही होगा,
इंसा होंगे आज कहीं जहालत न होगी,
सुनकर एक पल लगा की गहरी नींद है शायद,
मेरी अक्सर ख्वाब में रहने की बुरी है आदत,
फिर खुद को उठाने का साहस जो जुटाया,
मेरे बाबा का हाँथ सहलाने सिर पर आया,
जगी हुयी थी हाँ मैं कोई ख्वाब नहीं था,
पर सत्ता के मालिक पर कोई एतबार नहीं था,
ऊग चूका था सूरज भी अब खुशहाली का,
जल चूका था चूल्हा भी मेरी माई का,
बोली जा मुह धोले फिर पकवान बनेंगे,
आज हमारी रसोई को उस पार के भी मेहमान चखेंगे,
फिर न जाने कहाँ से एक बदली सी छाई,
अखबार में अचानक एक भयानक खबर जो आई,
जिसने एलान किया था अमन का जिन्दा नहीं है अब वोह,
जो जैसा है उसको वैसा ही रहने दो,
नहीं कोई बदलाव ज़ारा भी क़ुबूल होगा,
करी अमन की बात भो जिसने रुसवा वोह होगा,
आज सुबह की खुशियाँ ग़म में बदल चुकी थी,
उस पार से फिर नफरत की आंधी सब तबाह करने निकल चुकी थी.
उम्मीद और ना उम्मीद से भरी ये कविता सच बयां करती है. अमन की आशा तो सब को है पर ये संभव कब होगा कोई नहीं जानता . हाँ ये लगता है हिन्दुस्तान बदल रहा है , बदलेगा . यहाँ अमन ज़रूर आयेगा . इमानदारी , कर्मनिष्ठ और देश भक्तों के दिन भी आयेंगी . जहाँ भ्रष्टाचार का नामोनिशान मिटा होगा और सच और कर्म सर्वोपरि होंगे ऐसा भारत……२०२० में हम विश्व के सबसे युवा देश होंगे ….युवा को समझना होगा गाँधी के सपने का भारत कैसा था …..और नेहल जैसे कवी ये याद दिलाते रहेंगे , लिखते रहेंगे …..
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There has always been a very thin line between patriotism and chauvinism. Sadly, we are on the latter side.
Your poem gives much needed hope.
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sad and unfortunate…
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