मैं एक
अपरंपरागत
स्त्री हूँ,
क्योंकि मुझमें ज्ञान है,
और मैं ज्ञान से जानती हूँ।
मैं पुरुषों के लिखे
इतिहास में नहीं हूँ,
पर मैं पुरुष के होने का साक्ष्य हूँ,
इतिहास में,
वर्तमान में,
और भविष्य में भी।
मैं परंपरागत इसलिए भी नहीं,
कि मैं पुरुष की पशुता, और शूद्रता,
न बन सकी,
और न बन सकी उसकी
श्रेष्ठता का रोड़ा।
मैं अपरंपरागत हूँ
क्योंकि मैं पूर्ण हूँ,
स्वयं से,
अपने भीतर के श्रेष्ठ पुरुष से।
और वे अधूरे हैं,
क्योंकि वे अपने
भीतर की स्त्री को
कलंकित कर मार चुके हैं।
बहुत खूब
भगवान शिव ने अर्ध नारीस्वर का स्वरूप दिखा कर ये बताया था की तुम केवल पुरुष या नारी ही नहीँ बल्कि दोनो हो ।
जल्दी मे केवल इतना ही
शेष बाद मे
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