उस सदियों पुराने महल की
दीवार की छोटी सी दरार देख
कायस लगने लगे
जल्दी ही ढहेगी,
मिट्टी में मिलेगी,
और मिट जाएगा
नामोनिशां
यहाँ के बाशिंदों का
जो सुबह से शाम करते है
इस छत के नीचे
शिद्दत से काम करते है,
सुनते है
किस्से कई
कैसे इसकी नीव पड़ी
कुछ चश्मदीद
आगाज सुनते है
कुछ इस जगह को
मनहूस बताते है
इस महल की गिरह में
हैं कई राज़ गहरे
राजा के इस महल के
होते थे कइ चेहरे
सच उसने आज तक भी
एक बार न कहा था
कोई भी नेक मंत्री
उसने नहीं चुना था
छल था कपट भरा था
लालच जो सर चढ़ा था
लगने लगी थी बोली
सौदे लगे थे होने
होते थे पद से ऊँचे
रहते थे मन से बौने
थे बेचने वे निकले
हर ईंट उस महल की
रोता रहा महल वह,
और रूह हुई छलनी,
बेबस था बेसहारा
अन्याय देखता था
सुनता था लाखों चीखें
कानों को भींचता था
कईयों की मौत देखी
कई पाप का गवाह था
अपनों को जाते देखा
पर रोक न सका था
बूढ़ा नहीं था इतना
जितनी पड़ी दरारें
तकलीफ सहते सहते
ख़ामोशी से खड़ा था।
जैसे हर शब्द की रूह से परिचित हूँ मैं इस सुन्दर दर्द भरे व्याख्यान के …जीवन में दरार , रिश्तों में दरार , महल में दरार मूल रूप विध्वंसता का सूचक होती है …दरार भरने वालों की जरूरत हमेशा रहती हैं ..जीवन में भी कुछ ऐसा समय आता है तो उम्मीद वैसा ही काम करती है …सच्चाई की ही अंत में जीत होती है , दिखे या न दिखे…इस महल को ढहने से बस उम्मीद रोके हुए है …
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आपके प्रेममयि आशीर्वाद के लिए सहृदय धन्यवाद्
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