मैं एक पथिक,पथ एकाकी,
मैं आगे बढ़ता जाता हूँ,
वे राह में कांटे बोते है,
मैं हँस कर फूल उगाता हूँ।
चढ़ता हूँ तुंग शिखर पर मैं,
ध्वज विजय वहां लहराता हूँ,
अवरोधों को भी लगा गले,
नयी राह बनाता जाता हूँ।
आंधी तूफ़ान हों राहों में,
हो कितनी ही भीषण व्याधि,
एक पल को न विचलित होता,
मैं चलता चलने का आदि।
दिन प्रति की बाधाओं से,
रुक जाना मेरा काम नहीं,
बस एक काम बढ़ते रहना,
एक पल थमने का नाम नहीं।
मैं हूँ मैंने ही अवनि की,
छाती में अंकुर बोया था,
मैंने चीर शिखर बीच से,
नदियों का रुख मोड़ा था।
मैं ईश्वर की अद्भुत रचना,
मुझमें चैतन्य समाया है,
जड़ के दुःख से न डिगता मैं,
मुझ में आनंद समाया है।
मुझको बौराया कहते वे,
वे कहाँ आदि हैं चलने के,
वे रुकते राह रोकते हैं,
वे व्यस्त हैं कांटे बोने मैं।
मैं उन सब का आभारी हूँ,
जिस जिसने भी यह काम किया,
राहों में बोकर कांटे,
मुझको चलने का काम दिया।
I am thankful to all those who said no. It’s because of them, I did it myself.”
― Wayne W. Dyer, You’ll See It When You Believe It: The Way to Your Personal Transformation…..बहुत सुन्दर रचना है . अत्यंत प्रेरणादायी और विचार योग्य .
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आभार..
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बिल्कुल स्कूल में पढ़ी हुई किसी कविता की तरह है।
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स्वागत है अर्पित..
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