उस दिन मेरे घर की आँगन में
तेरे आँसू की बूँद गिरी थी,
उस आँसू की एक बूँद से
एक नन्हा पौधा निकला है|
देख रहा मैं उसे एक टक,
वह मुझे एक टक देख रहा है|
चुप है जैसे तुम रहती थी,
खुश है जैसे तुम रहती थी,
बिन पानी और बिना खाद के,
वह तुमसा ही ऊग रहा है|
याद तुम्हें वैसे तो होगा,
मेरा आँगन खुला खुला है,
सहकर उष्णा, सर्द हवा भी
वह तुमसा ही हरा भरा है।
मुझे लुभाने उसने भी कल,
कई रंग के फूल उगाये,
जिन रंगों में तुम सजती थी
उसने सारे रंग सजाये।
भीड़ लगी थी उसे देखने,
जिस तरह तुम्हें थे लोग चाहते,
वह भी ठीक तुम्हारी तरह,
बिलकुल नम्र झुका हुआ है|
जब जब महक उसके फूलों की
मेरे घर को महकाती है,
तब तब मेरी आँखों के आगे,
यादें बीती आ जाती है|
तुमने लाखों खुशियाँ बाँटी,
पर मैं एक भी रख ना पाया,
और तुम्हारे इक आँसू ने,
फिर मेरे जीवन को सजाया।