पुष्प सुकोमल औ’ सुगन्धित
हर लेते मन, करते मोहित
झड़े पर्ण पीले तरुवर के रंग हरा हर डाल सजाया
देख सखी फिर फागुन आया,
कभी प्रीत औ’ कभी छल,
लेकर टोली और मित्र दल,
रंगने रंग में आज गोरी को, देख हरी ने स्वांग रचाया,
देख सखी फिर फागुन आया,
लाल, गुलाबी, नीले, पीले,
गहरे गहरे और चठकीले,
बिखरे रंग कई अब जग में, कई रंग में मन रंग आया,
देख सखी फिर फागुन आया।