कल बात हुई थी तुमसे कुछ पल,
तो महसूस हुआ की मेरी तरह,
तुम भी रहते हो खोए से,
तन्हा अकेले भीड़ में हर पल,
क्यूँ तुमने फिर भीड़ चुनी थी,
क्यूँ तुम साथ निभा न पाये,
क्यूँ सब पाने की ख्वाहिश में,
तुम खुद से ही हुए पराए,
क्यूँ तुम हर पल ढूंढते रहते,
जीवन के धुँध में अपनों के साये,
और अपनों को पाने की चाहत में,
तुमने कई अपने किये पराए,
क्यूँ तुम में सामर्थ्य नहीं था,
जीवन के सच को सुनने का,
क्यूँ तुम औरों की सुनते सुनते,
अपने ही मन की न सुन पाये,
क्यूँ तुमने फिर प्यार को छोड़ा,
फिर प्यार को अपने समझ न पाये,
और फिर प्यार पाने की कशिश में,
हरदम बेचैन नज़र तुम आये,
क्यूँ फिर ऐसी राह चुनी थी,
जिसकी मंजिल तलाश न पाये,
और खुद को साबित करते करते,
कितने लाचार नज़र तुम आये,
हाँ हूँ मैं तन्हा,
कुछ तेरी ही तरह,
पर हरगिज़ कमज़ोर नहीं हूँ,
हूँ मैं अकेली भीड़ में हर पल,
पर फिर भी लाचार नहीं हूँ,
खुश हूँ खुद से,
और जीवन से,
क्यूँ की मैंने प्यार किया था,
जो अब भी बाकी है मुझ मैं,
क्यूंकि मैंने उसे जिया था,
नहीं है ख्वाहिश जग पाने की,
और प्यार छोड़ कर सब पाने की,
मायूस हो तुम अब मुझे छोड़कर,
मैं खुश हूँ मैंने तुम्हे चुना था
One of the great poem I ever read.
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I heard it a long time back. It still makes me uncomfortable! And I think that says a lot about the sheer incisiveness with which you’ve come to write your poems. Take a bow!
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thanks a lot! both of you Swapnil and Goblinsnephew (Aashirwad). its just came out earlier when i saw the people not satisfied with the choices they made in their life… Anyways thanks once again for appreciating..
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जैसे हमेशा कहती हूँ परिपक्व लेखक के पूरे गुण हैं तुम्हारी लेखनी में . क्यों …सोचने पर मजबूर करती है …ज़िंदगी में ” क्यों ” आने से इंसान कमज़ोर बन जाता है . वैसे प्यार वफ़ा मुहोब्बत हर इंसान के बस की नहीं और हर किसी की किस्मत में भी नहीं….अपने आप को समर्पित करना आसान नहीं..पर अपनी समय के बंधन में ना बंधने वाली कविताओं से तुम किसी भी उदास जीवन में रौशनी , उम्मीद भर सकती हो…मेरे भी . वैसे मुझे कविता सुनाती भी हो …और जिलाती भी.
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dear maam your love and affection inspire me to write more and more
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