कई दिनों से दिल कुछ मेरा डरा हुआ सा सहमा सा है,
उलझन कोई मेरे ज़ेहन में छुपी हुई है,
आँखों में है चुभन और दिल में दर्द भरा है,
कोई सोच न जाने कब से मेरे अंतर मन में रुकी हुई है,
छोड़ दिया था कल मैंने जिस वक़्त जहां पर,
उसी जगह पर अब मेरा वही वक़्त रुका है,
थाम के चलना चाह मैंने वक़्त का दामन,
न जाने किस बात पे उखड़ा मेरा वक़्त खफा है,
रोज़ कई बातें होती हैं मेरी ही मुझसे,
सोचती रहती हूँ उलझन का कारण जानू.
रोज़ नए धागे बुनती हूँ मई धड़कन के,
अपने मन को समझाने की आज कोई तरकीब निकालूँ,
नींद नहीं आती अक्सर मुझको रातों में,
अक्सर मेरी बिन बात के आँखें नम रहती हैं,
ना जाने क्यूँ दिन भी मेरे रात की तरह,
अक्सर अंधेरों में दिल की ही गुम रहते हैं,
और ये सब होता है शायद की मेरे दिल में,
तेरे दिल के दर्द का कोई राज़ छुपा है,
शायद में उलझी रहती हूँ सोच में तेरी,
जैसे तेर अन्दर मेरे दिल का हर जज़्बात छुपा है,
कल रात को मैंने ख्वाब में तेर जाने का एक ख्वाब जो देखा,
आज सुबह से फिर दिल मेरा डरा हुआ सा सहमा सा है,
Reading your poems is indulging in an act of catharsis. I hope writing them does the same for you.
You weave here a structure of rare sublimity. Excellent.
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thanks a lot dear for such a wonderful appreciation. it means a lot to me and yes it does the same for me..
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M always a big fan of your writing , n this on is really very touching.
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thanks a lot dears, you approval means a lot to me..
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ख्वाब की हकीकत कुछ ऐसी बयां की , कि ज़िंदगी भी ख्वाब के सन्नाटे पर अनहोनी , अकल्पनीय , कभी मुस्कुराती, कभी रुलाती , बस अप्रत्याशित , अचरज भरी बस एक घटना सी लगने लगी ….लिखते रहो नेहल और सुनाते भी…..इस व्यर्थ सी दुनियां में तुम्हारी कविता ….जिंदा करने लगती हैं…रोज
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thanks a lot ma’am. you are close to my heart, n your comments inspire me to write
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