बीता साल दशा बुरी थी,
ग्रहों की शायद दिशा वक्री थी,
दानव सी सोच थी हावी मनुज पर,
मानवता मस्तिष्क मन से उतरी थी,
अत्यंत जटिल था साल जो बीता,
कुटिल था काल, काल जो बीता,
अश्रुपूर्ण द्रवित नैनों का,
कठिन था हाल, हाल जो बीता,
सत्ता, शोषण, स्वार्थ, के वश में,
स्वच्छंदी, हो मन किया संहार,
क्लेश, कलुषता, कुंठा, क्रोधवश,
मानवता पर किया प्रहार,
उन्मूलन किया उद्येशों का,
उत्तेजना, उत्कंठा, उन्माद में,
संवेदना, सरलता, सार्थकता जीवन की,
खोकर रह गयी खोह में,
हुए सम्रद्ध, संपन्न, सफल, स्वयं में,
पर कैसे मानक तय हो पाये,
दुःख, दर्द, दरिद्रता, डर व्यापक था,
प्राप्तियां, ओछी, बोनी, तुच्छ पड़ जाये,
हालां की साल नहीं था ऐसा की गर्व से देखा जाये,
और भूल करके भूलना ही है मनुज पर्याय,
है मनुष्य ही वोह शक्ति जो दुखों से उबर कर आये,
और करे अगर प्रण दृडता से तो सब संभव कर पाये,
रखें न द्रोह, कोप, क्रोध हृदय में, आदर्श नए अपनाये,
हाँ “मैं” के लिए ये सरल न हो पर निश्चित ही “हम” कर पाये.
Well written…
Your hold on the language is quite good, rarely seen these days… Looking forward to read more… Keep writing…
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thanks a lot.. trying to do justice with atleast one language..
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Excellent.
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True really true,,,,,but love the lines.हाँ “मैं” के लिए ये सरल न हो पर निश्चित ही “हम” कर पाये.
Together we will…..
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thank you Ma’am. And yes together we will…
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It’s enough that it’s a new year, happy or otherwise. It’s enough that we are here to see it. It’s enough. But, is it?
The mood’s claustrophobic, as our lives are.
Bravo!
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